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लेखनी कविता - देव! दूसरो कौन दीनको दयालु -तुलसीदास

देव! दूसरो कौन दीनको दयालु -तुलसीदास 

देव! दूसरो कौन दीनको दयालु।
 सीलनिधान सुजान-सिरोमनि,
सरनागत-प्रिय प्रनत-पालु॥१॥
 को समरथ सर्बग्य सकल प्रभु,
सिव-सनेह मानस-मरालु।
 को साहिब किये मीत प्रीतिबस,
खग निसिचर कपि भील-भालु॥२॥
 नाथ, हाथ माया-प्रपंच सब,
जीव-दोष-गुन-करम-कालु।
 तुलसीदास भलो पोच रावरो,
नेकु निरखि कीजिये निहालु॥३॥

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